फेस बुक के फेस [ होरी खड़ा बज़ार में ]
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'होरी' को बहुत दिनों बाद आज बाज़ार में टहलते हुए पत्रकार , कवी , लेखक , समीक्षक , संपादक , यु एस एम् पत्रिका फेम वाले आदरणीय उमासंकर मिश्र जी मिल गए |हमेशा सीना तान कर चलने वाले ,सर आसमान की और रखने वाले भाई मिश्र जी आज फेस नीचा किये हुए थे |मैनें पूछ लिया आदरणीय आज फेस नीचा क्यों ? सुनते ही वह बिफर पड़े , फिर बिखरे , बिखरे करुण रस में डूबे हुए , भुन भुनाते हुए बोले .....'होरी' जी मैं फेस बुक के चक्कर में पड़ गया | आज हाल यह है कि ३५ वर्षों की साहित्यिक साधना गर्त में मिल गयी | फेस बुक ने मेरा फेस ही बिगड़ दिया , क्या करूँ , नीचे कर के चल रहा हूँ |
मैंने कहा ...पहेलियाँ न बुझाईये , माजरा क्या है ? बताईये | वह ठंडी साँसें लेते हुए मुझसे रौद्र रस में बोले ......'होरी' , यार तुम्ही ने इस जाल में फंसा दिया |मै सीधा सादा , कलम , कागज , दवात के बल पर साहित्य सर्जन करता था , साहित्यकार बना था ,डाक तार विभाग अधिक से अधिक कोरियर की सेवाएँ ले लेता था |तुम्ही ने कहा था की इंटरनेट का युग है ....इमेल खोलो ... फेस बुक में जाओ | मै चला गया | मै भी फेस बुक वाला बन गया , चैटिंग करने लग गया , मेसेज भेजने लग गया |मेरा नाम इन्टरनेट में छा गया | मै घोड़े की तरह दौड़ ही रहा था कि किसी ने घोड़े को टंगड़ी मारी , घोड़े ने मुझे दुलत्ती मारी ,मैं चारो खाने चित्त |मिश्र जी फेस जमीं में गडाए ,गडाए बोले ...भाई मेरे विरोधिओं ने फेस बुक में मेरे बारे में न जाने क्या क्या कहा .... पाखंडी , कविता चोर , कहानी चोर , साहित्य चोर , dhan hadpu आदि आदि विशेषण तो दिए ही 'मां , 'बहन ' तक कर डाली |मैं जवाब देते देते परेशान | जितना जवाब देता उतनी ही मेरे खिलाफ मुहीम तेज | फेस बुक में मेरे खिलाफ लायिक कि बटन ऐसे दबाई कि मुझे ही नालायक बना दिया |
सब मेरे विरोधियों को लायिक कर रहे थे |
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