चलो चलें गांवों की ओर |
थामें मात्र सदन की डोर ||
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यह देखो यह चिड़िया रानी ,
कहते जिसे सभी हम मोर |
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यहाँ नहीं शहरी कोलाहल ,
यहाँ न कोई किंचित शोर |
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चलो चलें हम पुनः देखने ,
ग्राम गली की स्वर्णिम भोर |
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देखो अपने ताल तलैया ,
'होरी' देखो अपने ढोर |
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राज कुमार सचान 'होरी'
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