कुर्मी और गरीबी
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देश में सबसे अधिक कुर्मी जाति [९९%] आज भी गांवों में रह रही है . कुर्मी जाति का मात्र 5% नौकरियों या व्यवसाय में लगा है.इन 5% को छोड़ दें तो ९५% संख्या किसानी कार्यों में आज भी गुज़र बसर करने को मजबूर है .आज सभी को पता है की पारंपरिक खेती में शुद्ध लाभ कुछ भी नहीं है . यही कारण है की किसान की आर्थिक स्थिति दिनों दिन खराब होती चली जा रही है .चूंकि देश में आज सबसे अधिक कुर्मी जाती का ही किसान है इसलिए स्पस्ट है की कुर्मियों की आर्थिक सबसे अधिक खराब होगी ही .
इधर खेती के क्षेत्र में प्राइवेट कम्पनियां धीरे धीरे प्रवेश कर रही हैं जिससे होगा यह की किसानों की भूमि वे लीज़ में ले कर उसी भूमि में उन्ही किसानों को मजदूरों के रूप में रखेंगी और आज का किसान कल का मजदूर बन जाएगा . आज भी कुछ लघु और सीमान्त किसान मनरेगा में मजदूरी करते देखे जा सकते हैं .वह समय दूर नहीं जब कुर्मी समाज मजदूर बन जायेगा .
चेतने का समय है.खेती क्रैश क्राप करके बचायी जा सकती है. जिले के उद्यान अधिकारी से संपर्क कर फलों ,सब्जियों और फूलों खी खेती करना सुरू कर दें .खेतों में अधिक से अधिक टीक [सागौन] के पेड़ लगाएं . यदि १०००[एकहजार] टीक लगाये जाँय तो १५ से २० सालों में वे ३ से ४ करोड़ रूपये तक हो जायेंगे और मजदूर बन्ने वाला किसान करोडपति बन जायेगा . एक उपाय यह भी है की एक दो बीघा खेत बेच कर अपने पास के कसबे में एक प्लाट ले लें जो कुछ वर्षों में ही आपकी कुल ग्रामीण भूमि से अधिक कीमती हो जायेगा . साथ ही इसके माध्यम से आप शहर में भी आ जायेंगे और नगरीय सुविधाएँ पाने लगेंगे .
आईये जो जागरूक हैं वे चेतें और अपने ग्रामीण परिवारों और मित्रों को इन रास्तों पर ले आयें . यह कुर्मी समाज के साथ बहुत बड़ा उपकार होगा.
राज कुमार सचान 'होरी'
राष्ट्रीय अध्यक्ष ,अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महा संघ
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