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Sunday, 27 March 2016

यूकीलिप्टस की खेती से लखपति बनें

यदि आप अपने खेतों के एक हेक्टेयर में यानी चार बीघे में ३@२ मीटर की दूरी पर यूकीलिप्टस लगाते हैं तो उसमें गन्ने की फ़सल के साथ ऐसा कर सकते हैं । पेड़ कुल लगेंगे १६६७ जो आठ साल से दस साल में प्रत्येक लगभग दो हज़ार रुपये का होगा । यानी कुल पेड़ों की क़ीमत होगी लगभग रुपये तेंतीस लाख । मान लिया जाय कि यह फ़सल १० सालों में तैयार होगी तो एक साल में औसत तीन लाख रुपये पड़ा । गन्ने की क़ीमत अलग ।लागत को घटाने के बाद भी शुद्ध आय लाखों में होगी ।
बन गये लखपति आप 
राजकुमार सचान होरी 
अध्यक्ष -- कृषक ग्रामीण श्रमिक मंच
सम्पादक - पटेल टाइम्स

Friday, 25 March 2016

Fwd: बदलता भारत



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From: बदलता भारत{INDIA CHANGES} <noreply+feedproxy@google.com>
Date: Monday 14 March 2016
Subject: बदलता भारत
To: horirajkumar@gmail.com


बदलता भारत


गेहूँ का समर्थन मूल्य

Posted: 13 Mar 2016 10:14 AM PDT

गेहूँ का समर्थन मूल्य
०००००००००००००००
भाजपा की केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारो से "बदलता भारत "की ओर से किसानों के लिये माँग है कि इस वर्ष किसानों के लिये मददगार साबित हों और गेंहू की लागत में कम से कम 25% की वृद्धि करते हुये समर्थन मूल्य घोषित करें । फ़सलों में क्षति का मुद्दा अलग है उसके लिये बीमा है पर उत्पादन का तो सही मूल्य दें । किसान को केवल वोट बैंक न समझा जाय। जय किसान ।।
राजकुमार सचान होरी
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Sunday, 6 March 2016

मनरेगा का कृषि से पूर्ण सम्बद्धीकरण

विषय -- मनरेगा का कृषि से पूर्ण सम्बद्धीकरण 

००००००००००००००००००००००००००००

        प्रिय महोदय, 

                  मनरेगा के आरम्भ से कुछ कठिनाइयाँ उत्पन्न हुईहैं जिनका श्रमिकों, किसानों ,कृषि और राष्ट्र के हित में निराकरण अति आवश्यक है ------

1-- मनरेगा में कार्यों के समाप्त या कम हो जाने के कारण श्रमिकों को रोज़गार कम मिलने लगा है -- भौतिक और वित्तीय आँकड़े प्रमाण हैं

2-- काम की कमी के कारण और दबाव में धन के समयबद्ध व्यय करने के कारण विभिन्न स्तरों पर भ्रष्टाचार बढ़ा है , कार्य बिना किये भुगतान या गुणवत्ता ख़राब की शिकायतें आम हैं

3-- किसानों की कृषि मज़दूरी बढ़ जाने और श्रमिकों के कम उपलब्ध होने के कारण खेती में लागत बढ़ी है , इससे किसान की आर्थिक स्थिति दिन पर दिन ख़राब हो रही है किसानों में आत्म हत्याओं की संख्या बढ़ी है

4-- श्रमिकों की कम उपलब्धता के कारण कृषि उत्पादन घट रहा है 

                भारत सरकारऔर प्रदेश सरकारों  ने यद्यपि किसानों के लिये कुछ नये उपाय किये हैं पर वे नाकाफ़ी हैं मैं स्वयं ,उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदों में मुख्य विकास अधिकारी के रूप में काम करते हुये मनरेगा सहित समग्र ग्राम विकास योजनायें देख चुका हूँ   विभिन्न जनपदों में किसानों के मध्य "बदलता भारत" संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में लगातार काम कर रहा हूँ अपने व्यापक अनुभवों के आधार पर मेरा सुझाव है --- 

                 मनरेगा योजना से ही किसानों के प्रमाणपत्र के आधार पर खेती में काम का भुगतान किया जाय इसके लिये नियम बनाये जायें ,शासनादेश जारी करते हुये कृषि के समस्त कार्यों के लिये कृषक को मनरेगा के मज़दूर उपलब्ध कराये जाँय जिनकी मज़दूरी का भुगतान किसान के सत्यापन के आधार पर वर्तमान व्यवस्था के अनुसार किया जाय

            उक्त व्यवस्था लागू होते ही  उल्लिखित चारों समस्यायें / कठिनाइयाँ स्वत: ही दूर हो जायेंगी और राष्ट्र का विकास होगा , ग्रामीण मज़दूर और किसान दोनो लाभान्वित होंगे इस सम्बन्ध में मैं व्यापक प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता हूँ यदि अवसर दिया जाय

                            भवदीय 

                     राज कुमार सचान होरी 

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी , राष्ट्रीयअध्यक्ष - बदलता भारत 

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176 Abhaykhand -1 Indirapuram , Ghaziabad 201014 



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Tuesday, 1 March 2016

Future of India -- farmers & army

भारत का भविष्य 

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जय जवान ! जय किसान !!

०००००००००००००००००००००

        अगर देश में एक भी किसान दुखी रहे और जवान को सुविधायें और देश का सम्मान मिलता रहे तो यह तय है कि यह देश दुबारा कभी ग़ुलाम होगा इतना सशक्त होगा कि विश्व शक्ति बनें

पर देश को कमजर्फ नेताओं और कमीनी राजनीति से बचाना होगा पूरा देश राष्ट्रवादी बन जायेगा अगर यह समझा जाय कि हिन्दू का विरोध और अपमान ही धर्मनिरपेक्षता है सही ,शरीफ़ मुसलमान या हिन्दू हमेशा देशप्रेमी होता है वहमिल कर रहना चाहता है पर कुछ सिरफिरे नेता हिन्दू मुस्लिम को लड़ा कर कुर्सी का गन्दा खेल खेलते हैं , तभी वे ही लोग किसानों और जवानों को हर सम्भव अपमानित करते हैं

किसानों और जवानों को शक्तिशाली बनायें राष्ट्र को संगठित और शक्तिशाली बनायें।

           जय जवान, जय किसान ,जय पटेल, जय सुभाष, जय हिन्द 

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राजकुमार सचान होरी 

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HORI KAHIN

           होरी कहिन 

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फूल और फल अब रहे,चहुँ दिशि में नक्काल

होरी   अपने   देश   में , बड़े   बड़े    भोकाल ।।

बड़े   बड़े  भोकाल , नक़ल  में  अकल  लगाते

दुनियाभर  का माल ,नक़ल  में  असल  बनाते ।।

कवि लेखक भी नक़ली,नक़ली नक़ली हैं स्कूल

सूँघ रहे हम जिन्हें चाव से , वे भी नक़ली फूल ।।

००००००००००००००००००००००००००००००००००

-- 

पढ़ लिख कर डिग्री लिये , फिरते चारों ओर

पढ़े  लिखों  में  बढ़  रही , बेकारी   घनघोर ।।

बेकारी  घनघोर , डिग्रियाँ  भी कुछ   जाली

असली नक़ली खोखली कुछ तो चप्पे वाली ।।

स्किल   डेवलप   एक  रास्ता  , तू  आगे बढ़

स्किल   डेवलप  कोर्सों   को ही ,अब तू पढ़ ।।

०००००००००००००००००००००००००००००००

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सत्तर प्रतिशत गाँव में ,अब भी देश सचान

कुछ भूखे नंगे मिलें , कुछ के निकले  प्रान ।।

कुछ के  निकले  प्रान , मगर   वे  हैं बेचारे

बस शहरों   की राजनीति के , मारे   सारे ।।

फ़सलों की लागत कम होती ,नहीं कभी भी।

अब  गाँवों  की दशा ,दुर्दशा  हाय   ग़रीबी ।।

०००००००००००००००००००००००००००००००

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सभी अन्नदाता दुखी , तिल तिल मरे किसान

देश बढ़   रहा शान  से , कहते  मगर सचान ।।

कहते   मगर  सचान , देश में   ख़ुशहाली  है

यह किसान को सुन सुन कर , लगती गाली है।।

होरी  अब   भी गोदानों की , वही   कहानी  है

धनिया , गोबर वही , गाँव का वह ही पानी है ।।

०००००००००००००००००००००००००००००००००

राज कुमार सचान होरी 

१७६ अभयखण्ड - इंदिरापुरम , गाजियाबाद 

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Monday, 29 February 2016

वर्मी कम्पोस्टिंग-मैनुवल .:: Literature - All World Gayatri Pariwar

http://literature.awgp.org/hindibook/yug-nirman/VerniCompostingManual.51


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ORGANIC FARMING :: Special technologies :: Coir compost

http://agritech.tnau.ac.in/org_farm/orgfarm_vermicompost.html


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VERMICULTURE

http://agri.and.nic.in/vermi_culture.htm


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किसान हितैषी

किसानों का बजट 

०००००००००००००

किसान हितैषी बजट के लिये मोदी जी और उनकी सरकार को साधुवाद हाँ, किसानों के लिये यह अभी नाकाफ़ी है इस देश में एक भी किसान आत्महत्या करे तब हम सफल हों

राजकुमार सचान होरी 

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Sunday, 28 February 2016

होरी कहिन - किसान पर

होरी कहिन
०००००००००००००००
१--
बस बलिदान जवान का, बस किसान का त्याग ।
दोऊ दुखिया देश में, खेलें पल पल आग ।।
खेलें पल पल आग , खेत सीमा पर दोऊ ।
इनकी सुधि भी लें न , कभी भारत में कोऊ ।।
करें आत्महत्या किसान तो , मरें जवान वहाँ ।
राष्ट्र इन्हीं के बलबूते पर , इनका दुखी जहाँ ।।
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राजकुमार सचान होरी
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किसान - अन्नदाता-२

किसान - अन्नदाता
(भाग -२)
भूमि से अन्न पैदा करना और उसे दानदाता की भाँति दूसरों को दे देना ,वाह रे अन्नदाता !! वाह रे धरती के विधाता ? शोषकों के शोषण से आकंठ त्रस्त पर भ्रम में मस्त कि वह " अन्नदाता " है । अन्नव्यवसाई या अन्न विक्रेता नाम हमने इसलिये नहीं दिये कि वह हानि लाभ की सोचे ही नहीं बस बना रहे अन्नदाता । लाभ हानि का गणित किसान को समझ में नहीं आना चाहिये ।जैसे ही समझ में आयेगा या तो वह खेती छोड़ देगा या खेती में ही मर खप जायेगा ।
अन्न व्यवसायी , अन्न विक्रेता , अन्न उत्पादक जैसे नामकरण शहरी धूर्तों , नेताओं और पाखण्डी लेखकों ,कवियों ने उसे दिये ही नहीं ।उसे तो अन्नदानी की श्रेणी में रख कर इन सबने सदियों से ठगा ही । तभी धूर्तो की प्रशंसा से ख़ुश होकर वह अधिक लागत लगा , अपना ख़ून पसीना लगा अपना अन्न , दाता के रूप में देता रहा । दान भाव से देता रहा अपना अन्न लहू से पैदा हुआ । वाह रे अन्नदानी !! किये रहो खेती , भूखों मरते रहो ,ग़रीबी में ही जियो ,मरो । जब सब्र टूट जाय कर लो आत्म हत्या किसी को क्या लेना देना , शहरी धूर्त यही कहेंगे कि पारिवारिक कलह से मरा ,बीमारी से मरा । सैनिक के मरने पर तो देश गमगीन भी होता है , सम्मान में क़सीदे भी पढ़ता है पर तेरे मरने पर जय किसान भी कोई नहीं कहता । कुछ समझे महामहिम अन्नदाता जी ??
कोई भी व्यवसायी घाटे में व्यवसाय अधिक समय तक नहीं कर सकता , किसान कर सकता है मरते दम तक । शहरी को खेती करते देखा है ? नहीं न ? है कोई माँ का लाल जो किसान की तरह काम करे ~ लागत अधिक लगाये , लगातार घाटा उठाये पर करे खेती ही । जीना यहाँ , मरना यहाँ की नियति में ।
सरकारें और शहरी धूर्त ,नेता ,व्यवसायी ,सब के सब लगे रहते हैं कि १-अनाज के दाम न बढ़ें और २- किसान खेती न छोड़े ,गाँव न छोड़े । नहीं तो भारी अनर्थ हो जायेगा । कहाँ मिल पायेंगे देश को ये 90 करोड़ बंधुआ किसान । चिन्ता उसके मरने से अधिक हमारे मरने की है , हम तो बंधुआ मज़दूर और बंधुआ किसान के पैरोकार जो ठहरे ।पढ़े लिखों के तर्क सुनिये किसान अनाज नहीं पैदा करेगा तो हम खायेंगे क्या ? देश क्या खायेगा ? जैसे पेट काट कर खिलाने का ठेका किसानों ने ले लिया है । स्वयं भूखों मर कर हम परजीवियों को ज़िन्दा रखने का पुण्य काम उसी के लिये है । हम तुम्हारी फ़सलो के दाम नहीं बढ़ायेंगे तुम मर जाओ ठीक पर देश नहीं मरना चाहिये । २०% को ज़िन्दा रखने के लिये ८० % की क़ुर्बानी ।
( क्रमश: )
राजकुमार सचान होरी
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किसान -अन्नदाता-१

किसान -अन्नदाता
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
किसान की होती है भूमि , जिस पर वह खेती करता है और ठीक वैसे ही भूमि का होत है किसान जो भूमि के लिये होता है ,भूमि के द्वारा होता है । उसका सम्पूर्ण अस्तित्व भूमि के लिये होता है । भूमि और किसान अन्योन्याश्रित हैं दोनो एक दूसरे पर निर्भर , एक दूसरे से ज़िन्दा ।किसान से भूमि छीन लो किसान मर जायेगा , भूमि से किसान छीन लो भूमि मर जायेगी -- एकदम बंजर ।किसान और भूमि का यह सदियों पुराना संबद्ध चलता आया है ।
इस मधुर संबंध में जब तब पलीता लगाया है किसी ने तो वे हैं भूमाफिया और भगवान । भूमाफ़ियाओं में सबसे ऊँचा बड़ा स्थान सरकारों का होता है , हाँ ग़ैरसरकारी भूमाफिया भी होते हैं जो संख्या में अधिक हैं और वे ही कभी सरकारों से मिल कर तो कभी अकेले दम पर ही भूमि को हथियाते हैं , कब्जियाते हैं । उधर भगवान के तो कहने ही क्या -कभी जल मग्न कर भूमि कब्जियाई तो कभी सुखा सुखा कर भूमि और किसान की दुर्गति करदी । कभी गोले की तरह ओले बरसा दिये तो कभी कोरें का बाण चला दिया । बस भगवान की मर्ज़ी ।कभी कभी तो एक साथ इतने सारे अस्त्र शस्त्र चला देता है भगवान कि किसान और भूमि दोनो को इतना घायल कर देता है कि किसान और भूमि दोनो गले लग लग कर मरते हैं ।
अन्नदाता -- एक अन्य नाम है ।किसान का कथित सम्मान बढ़ाने वाला नाम । जैसे प्राणदाता , दानदाता या जीवनदाता ।
क्रमश: ------


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Monday, 22 February 2016

जय किसान, जय जवान यही है सत्य?

            देश द्रोहियों के समर्थकों को खुली चिट्ठी 
००००००००००००००००००००००००००००००००००००
       मेरे देश के धृतराष्ट्रों ,
        तुम्हें नहीं याद होगा देश का स्वतन्त्रता संग्राम , नहीं याद होगा जलियाँवाला बाग़ , नहीं याद होगें सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु , तुम्हें नहीं याद होगा चन्द्र शेखर आज़ाद ,नहीं याद होंगे लाला लाजपत राय , नहीं याद होंगे लाल, बाल ,पाल, नहीं याद होगा १८८५ से कांग्रेस का आंदोलन, नहीं याद होगा तिलक का कहना -- स्वतन्त्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है । तुम्हें तो नहीं याद होगा पहला स्वतन्त्रता संग्राम , नही याद होगी रानी लक्ष्मी बाई , न याद होंगे - नाना साहब , तात्या टोपे ,बहादुर साह ज़फ़र ।
               तुम्हें नहीं याद होंगे सुभाष चन्द्र बोष , फिर उनकी आज़ाद हिन्द फ़ौज तो भला कैसे याद होगी !? तुम्हें भला गाँधी ,नेहरू, अम्बेडकर तो कहाँ याद होंगे ? राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाले और उसे अखंड बनाने वाले लौह पुरुष सरदार पटेल भला तुम्हें कहाँ याद होंगे ? कश्मीर की पहली ही जंग ४७-४८ भला तुम्हें कैसे याद होगी? १९६२ की चीन से लड़ाई, १९६५ और १९७१ की पाकिस्तान से लड़ाइयाँ तुम भला कैसे और क्यों याद रखोगे ? इंदिरा की बांग्लादेश की लड़ाई और उनका बलिदान भी तुम क्यों याद रखोगे ? कारगिल को भूल गये । कश्मीर के लिये रोज रोज शहीद होते जवान तुम्हें भला कैसे याद रहेंगे ? तुम तो अंधे जो हो , धृतराष्ट्र जो ठहरे ।
             सत्ता के मोह में ग्रस्त धृतराष्ट्र । वोटों के लिये राष्ट्र के विरोधियों के समर्थक जन्मान्ध नेताओं तुम्हें न तो देश के लिये प्राण अर्पण करते सैनिक दिखाई देते हैं , न दिखाई देता है हर साल हज़ारों ललनाओं की उजड़ती माँग । विधवाओं के विलाप तुम्हें सुनाई नहीं देते ,क्योंकि तुम अंधे ही नही बहरे भी हो । हर साल माओं की उजड़ती गोद से भी तुम्हें क्या लेना देना ? तुम्हारे लिये तो राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र वाद भी पार्टियों में बँटा है । कांग्रेसी राष्ट्र वाद, भगवा राष्ट्र वाद, साम्यवादियों ,नक्सलवादियों , कश्मीरियों का राष्ट्र वाद । लालू, नीतीश , येचुरी , केजरी का राष्ट्र वाद । 
             न जाने कितने राष्ट्र वाद और तमीज़ दमड़ी भर की नहीं कि राष्ट्र वाद तो एक है जिसे शहीद होने वाले सैनिक से ही आख़िरी साँसों के समय पूछ लेते । पूछ लेते तो शहीद की माँ से जो अपने दूसरे लालों को मर मिटने के लिये सीमा पर फिर भेजने को तैयार है । अंधो ! संसद में हमले के नायक तुम्हारे आदर्श हो गये अफ़ज़ल तुम्हारे गुरू हो गये ।मक़बूल तुम्हारे हीरो हो गये ! देश को खंड ,खंड करने के नारे लगाने वाले , टुकड़े करने की कश्में खाने वाले तुम्हारे नायक हो गये । कश्मीर, केरल फिर कल बंगाल की आज़ादी माँगने वाले ही नहीं छीन कर लेने वाले उद् घोष तुम्हारे आदर्श हो गये ? 
                तुम सब के सब इतने गिर गये , पतित हो गये कि राष्ट्रद्रोह का क़ानून ही भूल कर दूसरी व्याख्या करने लगे ! आख़िर क्यों ? क्यों ? क्या तुम्हें सारे मुसलमान आतंकी लगते हैं जो सबका समर्थन लेने के लिये चन्द आतंकियों ,देशद्रोहियों का समर्थन करने लगे । तुम भूल गये मुस्लिम राष्ट्र भक्तों को ! तुम सियाचिन मे हनुमनथप्पा के साथ शहीद होने वाले उस सच्चे मुसलमान सपूत की शहादत भी भूल गये अंधो !  तुम व्यक्तिगत स्वतन्त्रता , अभिव्यक्ति की आज़ादी वालों भूल गये कि देश ही नहीं बचेगा तो कौन सी अभिव्यक्ति की आज़ादी ? ग़ुलामों की कोई आज़ादी होती है ?
               धर्म, जाति के नाम पर बाटने वालों मत भूलो कि हम कमज़ोर हुये तो देश कमज़ोर होगा , टूट जायेगा , खंड खंड हो जायेगा । कश्मीर के चन्द कट्टर मुसलमान बहके हुये हैं और कश्मीर के पंडितों को खदेड़ कर किस कश्मीरियत की बात कर रहे हैं ? उन्हीं के अनुयायी जे एन यू और देश में अनेक जगह फैले हैं जिन देशद्रोहियों का समर्थन ये कलियुगी धृतराष्ट्र कर रहे हैं ।
           देश में हम जिन सैनिकों की शहादत से अभिव्यक्ति की आज़ादी मनाते हैं , संसद में बैठ कर आतंकी सोच का समर्थन करते हैं यह कैसे सम्भव हो ?अगर सैनिक क़ुर्बानी न दें । इन अंधों ने ही कश्मीर समस्या पर या तो मौन साध कर या उनका तुष्टीकरण कर इतना मर्ज़ बढ़ा दिया है कि आज जब देश को एक होना चाहिये तब भी बँटा है । यह वही जे एन यू है जहाँ कारगिल के बहादुर सैनिकों को इस लिये लहूलुहान किया गया था कि उन्होंने हिन्द पाक मुशायरे में पाक शायर की भारत विरोधी कविता का विरोध किया था । यह वही जे एन यू है जहाँ नक्सली मुठभेड़ में मारे गये ७६ जवानों की मौत पर उत्सव मनाया गया था जब सारा देश दुखी था । यह वही जे एन यू है जहाँ हिन्दू देवी देवताओं की नंगी तश्वीरें लगाई गयीं थीं । पर अफ़सोस इन देशद्रोही घटनाओं पर तत्कालीन सरकारों नें कुछ भी कार्यवाही नहीं की थी और मर्ज़ बढ़ता गया ।
          जिस अफ़ज़ल गुरू को फाँसी सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति की संस्थाओं की सम्पूर्ण प्रक्रियाओं के बाद दी गयी थी वह कांग्रेस की सरकार का समय था पर वही कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल और उनकी मंडली देश को खंड खंड करने वालों की तरफ़दारी करने लगी । उनके लिये अफ़ज़ल शहीद हो गया । क्यों ?? अगर इन दिग्भ्रमित नेताओं को यह मुग़ालता हो कि इससे मुसलमानों का वोट मिलेगा तो मतलब यह हुआ कि वे सारे मुस्लिम समाज को अफ़ज़ल गुरुओं ,का समर्थक मानते हैं । यह सोच ग़लत है । कुछ राष्ट्र विरोधी तो हर समुदाय में हैं यहाँ भी हैं वहाँ भी पर जो अंधे राष्ट्र द्रोहियों का सम्मान करते हैं , उन्हे बचाते हैं वे भी देशद्रोह ही कर रहे हैं सज़ा उन्हे भी मिलनी चाहिये ।
        राहुल और उनके साथी राष्ट्रवाद भाजपा से न सीखें तो कोई बात नहीं अपनी दादी इंदिरा गाँधी से ही सीख लें जिन्होंने १९७१ की भारत पाक लड़ाई में बांग्लादेश बनाया और पाक को हज़ार घाव दिये । मार्क्सवादियों के राष्ट्रवाद पर कुछ कहते भी शर्म आती है जिन्होंने १९६१ के भारत चीन युद्ध में चीन का समर्थन किया था । देश के स्वाधीनता आन्दोलन में किसके साथ थे इनसे ही पूछिये । अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थक ये वाम पंथी आपातकाल के समर्थक  क्यों थे? इनसे पूछिये ।
        बहुत हो चुकी धृतराष्ट्रीय राजनीति , इसको बन्द करिये अगर देश का नमक खाते हो तो । हाँ, अगर तुम्हारे लिये नमक, अन्न, पानी विदेश से आता है तो देश अभी सक्षम है तुम्हें भी देखेगा । क़ुर्बानियों की ज़रूरत तब भी थी , अब भी है -- हम तैयार हैं धृतराष्ट्रो !!
०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
           राजकुमार सचान होरी 
        अध्यक्ष - बदलता भारत 
www.horionline.blogspot.com
वरिष्ठ साहित्यकार , समाजसेवी ।

Saturday, 13 February 2016

सागौन की फ़सल

सागौन की फ़सल
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आज मैं एक हेक्टेयर खेत में टीक ( सागौन) की खेती करने पर अर्थ शास्त्र की बात करूँगा । जैसे आप बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट की स्कीम समझते हैं वैसे ही मैं इसे समझाता हूँ ।
मात्र एक हेक्टेयर में टीक 2 मीटर की दूरी पर प्रारम्भ में लगाने हैं कुल 2500 पौधों की ज़रूरत पड़ेगी । आज कल वन विभाग या प्राइवेट कम्पनियाँ पौधे उपलब्ध कराती हैं । इनमें अच्छी प्रजाति के पौधे लगायें । खेत में जल भराव नहीं होना चाहिये । गहरे खेतों में टीक न लगायें ।
अप्रैल से लेकर सितम्बर तक पहले गड्ढे तैयार कर और उनमें गोबर की खाद तथा डीएपी डाल कर टीक लगायें । पहले तीन वर्षों तक गर्मियों में सिंचाई करने की आवश्यकता है । दीमक का ट्रीटमेंट भी आरम्भ में ही करें ।
एक हेक्टेयर में कुल 2500 पौधे की क़ीमत सरकारी में कम लगभग 20 रुपया प्रति पौधा और प्राइवेट में 50 रुपये । कुल क़ीमत क्रमश:50 हज़ार रुपये या 125000 रुपये ।
टीक की वृद्धि जलवायु मिट्टी पर भी निर्भर है , लेकिन 20 वर्षों से लेकर 40 वर्षों तक टीक अच्छी क़ीमत दे देते हैं । जो 2500 पौधे आरम्भ में लगाये थे उनकी छटाई के साथ साथ कमज़ोर पौधों को जड़ से हटाना ( thining) भी होता है इन पौधों की लकड़ी भी बिकती रहती है । टीक की लकड़ी किसी भी उम्र के पौधे की बिक जाती है । 3 और 4 वर्षों तक कम करने से शेष मज़बूत पौधे लगभग 1000 (एक हज़ार ) को पूर्ण बढ़ने दीजिये , जिन्हें आपको निर्धारित अवधि के बाद बेचने हैं ।
घनफीट यानी लकड़ी की मात्रा के अनुसार इनकी क़ीमत पर पेड़ रु 30,000 (तीस हज़ार ) से लेकर रु 80,000 हज़ार तक कम से कम हो जायेगी । एवरेज मान लें तो गणना कर सकते हैं 50,000 रुपये प्रति पेड़ । इस तरह कुल रुपये जो आपको मिलेंगे वह होंगे 50000000 रुपये यानी 5 करोड़ रुपये ।
यदि आप युवा अवस्था में लगाते हैं तो स्वयं अन्यथा आपके बच्चों को इतनी भारी भरकम राशि मिलेगी वह भी White money .
देर किस बात की आइये करोड़पति बन जाइये आप भी ।
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राज कुमार सचान होरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
बदलता भारत
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Wednesday, 3 February 2016

Tregedy

Indian farmers are inself a tragedy . No one cares them, only votes needed .
They are making sucide but in vain.

Wednesday, 20 January 2016

Farming Insurance

किसानों की फ़सल बीमा योजना अति आवश्यक है । आत्म हत्या को रोकने के लिये कुछ कारगर होगी यह स्कीम पर किसानों को इतने से काम न चलेगा । वैज्ञानिक खेती कब होगी ?

                    राजकुमार सचान होरी 
                अध्यक्ष बदलता भारत 
               सम्पादक पटेल टाइम्स