राजनीति से ही मिले , प्रजातंत्र का स्वाद |
'होरी' बिन सत्ता रहो , भिक्षुक से आबाद ||
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सत्ता औ साहित्य से , वर्ण उच्च हो जाय |
'होरी' कैसे , कब कहो , कौन इन्हें समझाय ||
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राजनीति से जो रहे , सदा दूर ही दूर |
'होरी' पिछड़े वे बने , सदियों से भरपूर ||
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राज कुमार सचान 'होरी'